27 मार्च 2011

क्या देखे यही सपने?

एक प्रश्न करती है
मुझसे मेरी आत्मा

क्या ऐसे ही जीवन की

की थी तुमने कल्पना?

सोच में पड़ गयी

समझ न पाई
न जाना
बचपन में खेले पढ़े
और देखे सपने

पर क्या हुए वे अपने?

बड़े हुए फिर चाहा

और बड़े बन जाना

पर सच्चे पथ से डिगने को

अपना मन न माना

देखा जब पीछे मुड़कर

ठिठके हम खड़े थे

उन्नति पथ पर
आगे को
हम तो नहीं बढे थे.

2 टिप्‍पणियां:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

sach kahaa bilkul aapne.....

hamarivani ने कहा…

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