13 फ़रवरी 2011

हालात बद से बदतर क्यूं होते चले जाते हैं ??

                                                    हालात बद से बदतर क्यूं होते चले जाते हैं ??
                                         (क्योंकि..........इक ब्राहमण ने कहा है......कि ये खेल अच्छा है.....!!)
                        कभी-कभी जब मै भारत की विभिन्न समस्याओं पर विचार करते हुए इसके कारणों पर जाता हूं,तो अक्सर उनको खत्म करने के लिए जो फ़ैसले मेरे जेहन में आते हैं,भारत के तकरीबन सारे नौकरीपेशा सरकारी कर्मचारियों के हितों के खिलाफ़ जाते हैं और तब मैं सोचता हूं कि शायद इस देश की अधिसंख्य समस्याओं को कभी नहीं मिटाया जा सकेगा,क्योंकि इसे मिटाने के रास्ते में आढे आने वाले होंगे खुद स्वार्थी भारतीयों के व्यापक हित, या कहूं कि स्वार्थ,तो यह ज्यादा समीचीन होगा !यह मैं क्यूं कह रहा हूं इसे आप जरा समझिये !!
               दोस्तों दुनिया भर में हम प्रत्येक उत्पाद को उसकी क्वालिटी के आधार पर तौलते हैं,प्रत्येक वह वस्तु,जो हमारे विचार के निम्नतम मानकों या फिर किसी भी तरह के संगठन या सरकारी मानक पर सही उतरती है,सिर्फ़ उसे ही हम अपनाना जारी रखे रहते हैं,उससे कम वाली वस्तु को तत्काल खारिज़ कर देते हैं,यह अलिखित व्यवस्था शायद हमारे समाज के रूप में संगठित होने के समय से चली आ रही है और इसीलिए तमाम क्वालिटी वाले उत्पाद कुछ ही समय में बाज़ार पर अपना प्रभुत्व कायम कर लेते हैं और उन्हें बनाने वाली कंपनियां एक ब्राण्ड नाम बन जाती हैं और अपने उस ब्राण्ड को यथाशक्ति कायम रखने का यत्न करती हैं तथा उन वस्तुओं को उपयोग में लाने वाला प्रत्येक उपभोक्ता भी अपने मन में एक तरह की राहत महसूस करता है,इसी प्रकार समाज के अन्य स्थानों पर भी यह लिखित और अलिखित व्यवस्था कायम दिखाई देती है जैसे स्कूल-कोलेज और अन्य तमाम संस्थानों में बच्चों-युवाओं और कर्मचारियों का मामला है,जहां बच्चों-युवाओं और कर्मचारियों को उनके प्रदर्शन के आधार पर नंबर,ग्रेड या वेतन आदि दिए जाते हैं,यानि कि जो बेहतर है,उसे बढिया और जो खराब है उसे उसे खराब ही कहा जाता है,यहां तक कि जो जितना बढिया या खराब है,उस आधार पर भी यही बात होती है,इस प्रकार यह ग्रेडिंग-मार्क और वेतन तरह-तरह का भी हो सकता है,होता है !

              लेकिन दोस्तों भारत के मामले में और खासकर कि सरकारी क्षेत्र में यही मामला एकदम से उलट जाता है,तमाम नैतिक और आदर्शवादी चिंतन "झाडने" वाले और निजी क्षेत्र के लोगों को तरह-तरह के पाठ पढाने वाले यही सरकारी लोग अपने काम के मामले में अपनी सारी बौद्धिकता मानो एकदम से खो ही देते हैं,यहां तक कि अपना काम भी नहीं करते,यहां तक कि अपना ही काम करने के लिए सरकार से लिए जा रहे वेतन के बावजूद अपने सम्मूख खडे हुए अपने ही समाज के प्रत्येक व्यक्ति से "अनुदान"(घूस,रिश्वत,कमीशन या जो भी कहिए) लेते हैं !और उसके बाद भी ये उस काम कराने वाले को दौडाते हैं !महंगाई और अन्य मुद्दों पर बात-बात पर आंदोलन करने वाले ये लोग अपने ही काम से विमूख और किसी की जान ले लेने की हद तक लापरवाह होते हैं,शर्म जिनको रत्ती भर भी छू नहीं गयी होती है !
              और इसका परिणाम क्या है ? इसका परिणाम यह है दोस्तों कि बिना काम के या कि राई बराबर काम के और वो भी उस काम को करने के एवज में लिए जाने वाले "अनुदान" के कारण ये लोग आर्थिक रूप से अत्यंत सुदढ होते चले जाते है,इनके घर में तमाम तरह के साधन मौजूद हो जाते हैं,जो दरअसल उस किसी ईमानदार कर्मचारी की खिल्ली उडाते हुए प्रतीत होते हैं,जिन बेचारों ने रोजी-रोटी के जुगाड से ज्यादा कभी कुछ सोचा ही नहीं होता, ! इन ईमानदार लोगों को कभी इन स्थितियों पर क्षोभ होता है,कभी क्रोध आता है तो कभी अपने-आप पर शर्म आती है,क्योंकि उनके बच्चे वो सब नहीं हासिल कर रहे होते जो भ्रष्ट लोगों के बच्चे कर रहे होते हैं,उनकी बीवीयां वो मस्ती नहीं कर रही होती जो उन भ्रष्ट लोगों की पत्नियां करती होती हैं !!.....अगर यह सब भी छिपे-छिपाए हुए हो तो शायद ईमानदार लोग अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीते रहें मगर होता यह है कि तमाम भ्रष्ट लोग तमाम ईमानदार लोगों का मज़ाक बनाया करते हैं,यहां तक कि ईमानदार लोग अपनी ईमानदारी पर गर्वित होना त्याग कर शर्मिंदा होने लगते हैं !!
             दोस्तों,यही वो स्थिति है जो किसी भी जगह को बदहाल बनाने लगती है,कोढ बन कर सारे शरीर को गलाने लगती है,घुन बनकर सारे चरित्र को खाने लगती है,क्योंकि अपनी सारी विवेकशीलता के बावजूद भी इंसान एक ऐसा जीव है,जो ज्यादातर दूसरों की देखा-देखी करता है....और इस प्रकार सारे समाज का आचरण बदलने लगता है और एक समय समुचे समाज का चरित्र ही बदल जाता है....क्योंकि खुशहाल तो दोस्तों हर कोई ही होना चाहता है,मैं भी...आप भी और इसी तरह सब ही.....!!और इस खुशहाली का हर रास्ता वाया "धन-सम्पत्ति" होकर ही जाता है और इस धन-सम्पत्ति का शार्ट-कट बेईमानी-धूर्तता-भ्रष्टाचार-अनैतिकता ही है,भले उससे कितनी ही अराजकता क्यों ना फैल जाती होओ.....और समाज एक बदबूदार गंदे "स्लम"
में तब्दील क्यूं ना हो जाता होओ !!
            ऐसे में ओ दोस्तों !आप सब ऐसा विचार कर भी कैसे सकते हो कि भारत कभी सुधर भी सकता है,जब आप लकडी से दीमक निकालने के बजाय उसे अपने प्रत्येक क्षण पोषित करते जाते हो,आपका हर कदम उन दीमकों को अपार भोजन प्रदान करता है,क्योंकि ये लोग अब ढेर-ढेर-ढेर सारे हैं,इतने कि एक समुचा "वोट-बैंक"...और आप इनकी अनदेखी कर अपने पेट (सीट!!) लात नहीं मार सकते....ऐसे ही लोगों को आप बचाते हो,ऐसे ही लोगों को आप प्रोन्नत करते हो...ऐसे ही लोगों को आप कर्मठ,ईमानदार और देश के जान देकर भी काम करने वाले देवता-समान लोगों के बराबर वेतन देते हो...और ऐसे ही लोग,जो अपने लिए जाने वेतन के बावजूद अपने सम्मूख उपस्थित "उपभोक्ता" को चूस कर अपना खून बढाता है...को अपने साथ रखकर "श्रेष्ठ-बेहतर और बेहतरतम" लोगों का मान-मर्दन करते हो...तब आप देश की सम्स्याओं का अन्त होने का सपना?? कैसे देख सकते हो...??
            दोस्तों,अगर वक्त रहते इस दोषपूर्ण प्रणाली में बदलाव नहीं किया गया तो इस देश के शिक्षक बच्चों को बे-ईमान और करप्ट ही बनाते रहेंगे...बिजली वाले,पानी वाले,सडक वाले,उर्जा वाले,वन वाले,विग्यान वाले,ग्रामीण-विभाग वाले,लोक-कल्याण वाले,सेल्स-टैक्स वाले,इनकम-टैक्स वाले,कामनवेल्थ वाले,नगर-निगम-पालिका वाले,पुलिस वाले,ट्रैफ़िक वाले,ये विभाग वाले,वो विभाग वाले,सब विभाग वाले....सब के सब हम भारतीयों द्वारा दिए गये विभिन्न तरह के टैक्सों से हर साल लाखों-लाख करोड (जी हां,हर महकमे में होने वाले भ्रष्टाचार का निम्नतम अनुमान भी लाखों करोड की राशि पर जाकर ठहरता है और इसी के लिए तो यह मारामारी है भाईयों...!!)खा-खाकर ऐश-मौज भी करते रहेंगे...डकारते भी रहेंगे....स्विस-बैंकों में अपना धन भी रखते रहेंगे...जो आज दो लाख करोड रुपये है....कर चार....परसों पांच लाख करोड रुपये भी हो जाएगा...तो आपके बाप के बाप के बाप का बाप भी क्या कर लेगा.....??है क्या दस का दम किसी भारतीय में.....??है क्या कोई सच्चा भारतीय....??
            दोस्तों !! चिल्लाते ही रह जाएंगे हम मरे हुओं से भी बदतर लोग.....और बेच कर खा जाएंगे भारत को भारत के ही तमाम "हरामी" (प्लीज़ यही कहने दीजिये मुझे !!) लोग....और स्वर्ग??(नरक नहीं क्या??) जाकर हम चिल्लायेंगे.....ईंडिया शाईनिंग....ईंडिया शाईनिंग.....इक ब्राहम्ण ने कहा है......कि ये खेल अच्छा है.....!!!!

--
http://baatpuraanihai.blogspot.com/

1 टिप्पणी:

Shikha Kaushik ने कहा…

india shining but only for those who are cheating indians .great article .