24 मई 2010

सुरेन्द्र अग्निहोत्री की कविता -- वे ललितपुर को नहीं जानते हैं

वे ललितपुर को नहीं जानते हैं
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जो कहते है कि ललितपुर को जानते है
दरअसल, वे ललितपुर को नहीं जानते हैं
वे इसे सिर्फ एक शहर मानते है
नदियों का, तालाबों का
अन्न उपजाने वालों का
भूख से आत्महत्या करने वालों का
उधार देने वालो का
वे जानते जरूर है
यह शहर है झुनारे रावत का
सदन कसाई का, मर्दन सिंह का
गणेश वर्णी का, लाल कवि का
हरि, जलज, तन्मय, विरही, परवेज का
राजीव लोचनाचार्य का, सुदामा गुसाई का
गन्नू चौधरी का, कल्लू कबाड़ी का
बल्लू उस्ताद का, लीला बेड़नी का
इसके वाबजूद मुझे यह कहने में
कोई हिचक नहीं होती है कि
वे ललितपुर को कतई नही जानते है
ललितपुर को जानते है वे
जो ललितपुर में शहजाद नदी की बाहों में बसते हैं
वे ललितपुर को कहते नही
ललितपुर का रचते है- रूचते है
ललितपुर की तंग गलियों में रहते है
पीढ़ी दर पीढ़ी से / सुम्मेरा तालाब के उजास घाटो पर जिन्होंने
जन्म से मृत्यु तक के कर्म किये है
जो सुख और दुःख में जिये है
जिन्होने वंशीपान वाले का खाया है पान
उन्होंने अर्ध चन्द्रकार को दिया है मान
जलूस के रसगुल्ले की मिठास
साई का दिया, और ठन्डाई को जिन्होंने नही पिया
वो क्यों जाने हरी मिठया के घवेर
और बिलके का नमकीन
जिन्होने नहीं सुना बीन
पढ़ लिखलें पार नही कर सकते कक्षा तीन।

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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
राजसदन
120/132 बेलदारी लेन,
लालबाग, लखनऊ

1 टिप्पणी:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

हां, सचमुच ऐसा ही है ललितपुर. बहुत सुन्दर रचना. घंटाघर चौराहे की भे चर्चा करते तो अच्छा होता.