26 अप्रैल 2010

हितेश कुमार शर्मा की कविता - मंहगाई

मंहगाई
=============================

मंहगाई कुछ और बढ़ेगी, लगता मुझको यार हितेश,
अभी सियासत और लड़ेगी मंहगाई पर यार हितेश।

कोरे भाषण या आश्वासन कमी नहीं कर पायेंगे,
जाने कितने घर निगलेगी यह मंहगाई यार हितेश।

लोकसभा में, राज्यसभा में भाषण दोषारोपण होंगे,
पर मंहगाई कम करने पर होगा नहीं विचार हितेश।

धरने और प्रदर्शन होंगे, हड़तालें और जाम लगेंगे,
इन्कलाब का शोर मचेगा मंहगाई पर यार हितेश।

ऊँचे नेता मंत्री अफसर सबके भाषण खूब छपेंगे,
पर गरीब का नहीं लिखेगा दुख कोई अखबार हितेश।

अपना सबकुछ देकर तू किस-किस को देगा राशन,
अनगिन चूल्हे बुझा चुकी है यह मंहगाई यार हितेश।

मिली न जुम्मन को मजदूरी फाका गुजरा हफ्तों से,
गंगा जी में डूब के उसने जान गँवाई यार हितेश।

सरकारी सेवक का वेतन बढ़ा दोगुना चौगुना,
मजदूरों की मजदूरी में बढ़ी न पाई यार हितेश।

हुये करोड़ों के घोटाले मंत्री मालामाल हुये,
उनको कभी न छू पायेगी यह मंहगाई यार हितेश।

टूटी हुईं चारपाई भी जिनके घर पर नहीं मिली,
सांसद और विधायक निधि ने उन्हें दिलाई कार हितेश।

मंत्री जी बनने से पहले कुल जमीन थी बीघा तीन,
सौ बीघे के कई फार्म हैं उनके अब सरकार हितेश।

चुपकर वरना कल को तेरा नहीं मिलेगा पता कहीं,
सत्ताधीशों के होते हैं हत्यारे किरदार हितेश।
-------------------
हितेश कुमार शर्मा,
गणपति भवन, सिविल लाइन्स,
बिजनौर - 246701 (उ0प्र0)

3 टिप्‍पणियां:

दीपक 'मशाल' ने कहा…

bahut bahut bahut sundar samayanukool kavitha likhi bhai Hitesh..

Dr. Mahendra Bhatnagar ने कहा…

समसामयिक प्रभावशाली सशक्‍त व्यंग्य रचना।
*महेंद्रभटनागर
फ़ोन ; ०७५१-४०९२९०८

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत अच्छा व्यंग्य , पर यथार्थ है, इसका कोई विकल्प नहीं है. विचारों की अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत की गयी.
रेखा श्रीवास्तव