12 जनवरी 2010

सुरेन्द्र अग्निहोत्री की चार कवितायेँ

लम्पट

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अरे ये लम्पट!
क्यों तू गा रहा है अग्निपथ-अग्निपथ!
अपने स्वार्थ के लिए
किसी का भी पाता सानिध्य
जिसने दी जड़ों को खाद और पानी
उसी के साथ कर ली बेईमानी
मैं और मेरे बच्चों के लिए
करता रहा मेल-जोल
धन के लिए ही करता है
नाप तोल कर गोल
मंगल के अमंगल से बचने
बकरी के बच्चे सा
होने वाली बहू का कान पकड़
करता मन्दिरों की नाप जोख
काल के ताण्डव का
हो न अपने परिवार पर प्रकोप
देश, समाज, शहर के लिए
क्या किया बता सके यह सवाल?
अपने को कृषक बताकर लूटना चाहता
गरीबों का माल
कब चलाया है हल?
फिर क्यों लेना चाहते झूठा प्रतिफल!

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छूट

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जो जहां काबिज हे
उसे खुली छूट है
मर्यादाओं का खूब उल्लंघन करे
भावनाओं को जमके छले
लीपापोती की हास्यास्पद हरकत करे
आपकी असुविधा पर सुचिंतित दिखे
मतलब सिद्ध हुए बिन एक न सुने
जिस पर किसी का अंकुश नहीं
न किसी का चाबुक कर सके काबू
आजाद भारत का है वह बाबू!

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इंतजार

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द्वार पर दर्द की यादें है
दिखने और होने के बीच
घुंघलका छंटने का इंतजार है
बिगुल फूंकने के लिए जुगत जारी
संकेतों में कर ली पूरी तैयारी
अपने-अपने दर्द और समस्याओं की फेहरिश्त लेकर
अपने सामने आते-जाते रहते हैं
उपेक्षित क्या यह समझ नहीं पाते हैं
भीनी-भीनी खूशबू में उलझकर
सजी-धजी रह जाती है तैयारी।

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शिद्दत

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चिलचिलाती धूप में
तपती हुई तारकोल की सड़क पर
हम सवारियां ही नहीं मजबूरियां भी
कड़कड़ाती सर्दी में, मूसलाधार वर्षा में
बड़ी शिद्दत से ढो रहे हैं
आप रहे कूलरों-एअर कंडीशनरों में
हमें फर्क नहीं पड़ता है
बेरोजगारी और बेकारी में
पेट की आग बुझाने के लिए
कुछ न कुछ श्रम तो कर रहे हैं
सिर छुपाने की चिंता नहीं
हमने रिक्शे को बना लिया घर
जनपथ से राजपथ लगाए तीन चक्कर
नहीं थे पैसो अन्यथा खरीद लेता थ्रीव्हीलर
पर मुझे शहर से क्यों खदेड़ रहे।
हम भी मानव हैं
क्यों जानवर बना रहे है।

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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
राजसदन 120/132 बेलदारी लेन,
लालबाग, लखनऊ
मो0 9415508695

1 टिप्पणी:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

har rachna apni chhap chhodti hai....waah