19 जनवरी 2010

मुक्तिका: खुशबू --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका

खुशबू

संजीव 'सलिल'

कहीं है प्यार की खुशबू, कहीं तकरार की खुशबू..
कभी इंकार की खुशबू, कभी इकरार की खुशबू..

सभी खुशबू के दीवाने हुए, पीछे रहूँ क्यों मैं?
मुझे तो भा रही है यार के दीदार की खुशबू..

सभी कहते न लेकिन चाहता मैं ठीक हो जाऊँ.
उन्हें अच्छी लगे है दिल के इस बीमार की खुशबू.

तितलियाँ फूल पर झूमीं, भ्रमर यह देखकर बोला.
कभी मुझको भी लेने दो दिले-गुलज़ार की खुशबू.

'सलिल' थम-रुक न झुक-चुक, हौसला रख हार को ले जीत.
रहे हर गीत में मन-मीत के सिंगार की खुशबू..

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2 टिप्‍पणियां:

दीपक 'मशाल' ने कहा…

सभी खुशबू के दीवाने हुए, पीछे रहूँ क्यों मैं?
मुझे तो भा रही है यार के दीदार की खुशबू..

तितलियाँ फूल पर झूमीं, भ्रमर यह देखकर बोला.
कभी मुझको भी लेने दो दिले-गुलज़ार की खुशबू.

roomaniyat aur darshan dono ka bhandaar hai gazal aapki..

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बसंत पंचमी की शुभकामनाएं