01 जनवरी 2010

कविता --एक शिकायत







नव
वर्ष
तुम्हारे अभिनन्दन के लिए
रात- दिन नेत्र ज्योति जलाये रहा
मित्रों ने शुभ कामनाएँ भी दीँ
मैंने उन्हें तुम्हारा स्वागत करने को कहा
पर मेरी चौखट पर तो तुम आये ही नहीं I


मैं
नदी -नाले गया
बाल्टियाँ पानी भरा
घर का कोना -कोना धोया
तुम्हारे अभिनन्दन के लिये


मैं
फूलों की नगरी गया
निर्जीव फूलों को सजीव जानकार खरीदा
छज्जा -दरवाजा सजाया
तुम्हारे अभिनन्दन के लिये


मैं व्यापारी के पास गया
कर्मों का गुणा -भाग लिया
तुम्हें दिखाना जो था
अपने भविष्य के लिये


मैं अमीरों की अटरिया पर चढ़ गया
तुम्हें दिल से पुकारा
तड़पता ही रहा
तुमसे मिलने के लिये


मैंने
ऊँची अदालत खट खटाई
तुम्हारे विरोध में अपील की
तुम माफ कर दिए गये
मेरा खून करने के लिये


अब
तो बतला दो
तुम कटीले जंगल में खो गये थे
या चाहते हुए भी मुझे नहीं सुना
संदेह का यह कीड़ा
मेरी मृत्युस्थली पर मुझसे ही
जंग कर रहा है

सुधा भार्गव
sudhashilp.blogspot.com



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