शब्दकार
आलेख
कविता
08 सितंबर 2009
मुक्तक
दुश्मन
अपने दुश्मन वे ख़ुद नजर आते है
नजर आए तो नजर
अंदाज
करते हैं
कोई तो है ,कहीं तो है
जो अविश्वास को हवा दे रहा है
प्यार की ठंडी
छांह
को
धुप
में बदल रहा है !
* * *
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