03 सितंबर 2009

गीतिका: शब्द-शब्द से छंद बना तू --संजीव 'सलिल'

शब्द-शब्द से छंद बना तू।
श्वास-श्वास आनंद बना तू॥

सूर्य प्रखर बन जल जाएगा,
पगले! शीतल चंद बना तू॥

कृष्ण बाद में पैदा होंगे,
पहले जसुदा-नन्द बना तू॥

खुलना अपनों में, गैरों में
ख़ुद को दुर्गम बंद बना तू॥

'सलिल' ठग रहे हैं अपने ही,
मन को मूरख मंद बना तू॥

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1 टिप्पणी:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सुन्दर गीतिकायें. इधर बहुत दिनों के बाद आपने कुछ पोस्ट किया है.