21 मई 2009

डॉ0 महेन्द्र भटनागर के काव्य-संग्रह 'राग-संवेदन' की कविता - 'चिर-वंचित'


(8) चिर-वंचित
.
जीवन - भर
रहा अकेला,
अनदेखा —
सतत उपेक्षित
घोर तिरस्कृत!
.
जीवन - भर
अपने बलबूते
झंझावातों का रेला
झेला !
जीवन - भर
जस-का-तस
ठहरा रहा झमेला !
.
जीवन - भर
असह्य दुख - दर्द सहा,
नहीं किसी से
भूल
शब्द एक कहा!
अभिशापों तापों
दहा - दहा!
.
रिसते घावों को
सहलाने वाला
कोई नहीं मिला —
पल - भर
नहीं थमी
सर -सर
वृष्टि - शिला!
.
एकाकी
फाँकी धूल
अभावों में —
घर में :
नगरों-गाँवों में!
यहाँ - वहाँ
जानें कहाँ - कहाँ!
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डा. महेंद्रभटनागर,
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