04 अप्रैल 2009

डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव की पुस्तक - पर्यावरण : वर्तमान और भविष्य (2)

-डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव
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यहाँ डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव की ‘पर्यावरण’ पर आधारित पुस्तक ‘‘पर्यावरण: वर्तमान और भविष्य’’ का प्रकाशन श्रृखलाबद्ध रूप से किया जा रहा है। यह पुस्तक निश्चय ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति कार्य कर रहे लोगों को, विद्यार्थियों को लाभान्वित करेगी।

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अध्याय-2 == पर्यावरण का अर्थ, संकल्पना एवं अवधारणा
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पृथ्वी पर संतुलित जीवन के लिए, वायु, भूमि, जल, वनस्पति, पेड़-पौधे, मानव सब मिलकर पर्यावरण बनाते हैं। पृथ्वी पर जबसे मनुष्य, पशु-पक्षी और जीव तथा जीवाणु उपभोक्ता के रूप में प्रकट हुए तब से लेकर आज तक यह चक्र निरन्तर अवाधि गति से चला आ रहा है। यहाँ पर जिन्हें जितनी आवश्यकता होती है वह उन्हें प्राप्त हो जाता है शेष जो बच रहता है वह प्रकृति आगे के लिए अपने पास संरक्षित कर लेती है। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में लिखा गया है- ‘‘हे धरती माँ, जो कुछ मैं तुझसे लूंगा, वह उतना ही होगा, जिसे तू पुनः पैदा कर सके। तेरे मर्मस्थल पर या तेरी जीवन शक्ति पर कभी आघात नहीं करूंगा। यही नहीं ऋग्वेद की ऋचाओं में भी पर्यावरण के तत्वों - पृथ्वी, जल, आकाश, वायु के प्रति सभी ऋषि नत्मस्तक होकर प्रणाम करते हैं अर्थात् भारत में नदियों को माँ तुल्य स्थान एवं सम्मान दिया गया है। आज संसाधनों के अंधाधुंध के कारण यह पूजन अर्चन की परम्परा कोरी कल्पना सी लगती है। भूमण्डलीकरण एवं बाजारीकरण के इस भौतिक युग में मानव ने प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिए अनेक सुख सुविधाएं एवं वैज्ञानिक उपलब्धियां अर्जित कीं साथ ही बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु औद्योगिक क्रान्ति का सहारा लिया गया, यह वह निर्णायक समय था जब हमारी प्रकृति का सामान्य सा रूप विखण्डित होने लगा। हम औद्योगिक क्रांन्ति और हरित क्रान्ति के योद्धा तो कहलाये परन्तु इसके पीछे हमारा आकाश एवं जमीन दोनों क्षतिग्रस्त हो गये और पंच तत्व का यह भैरव मिश्रण अपनी स्वच्छता खोने लगा। इससे हमारे परितंत्र एवं पारिस्थितिकी असन्तुलित हो गये। वन कटने लगे, उपजाऊ भूमि पर आवास बनने लगे, बड़े-बड़े जंगल साफकर बांधों की योजना बनी और न जाने कितने ऐसे प्रयोग शुरू हो गये जो मानव और प्रकृति के अनुकूल नहीं थे जिससे सामान्य जीवन में अनेक परिवर्तन परिलक्षित होने लगे। पर्यावरण हितैषी जीव-जन्तुओं की बहुत सी प्रजातियाँ विलुप्त होती गयीं और जो शेष बची हैं वे विलुप्त होने के कगार पर खड़ी हैं। सफाईकर्मी गिद्ध विलुप्त होते जा रहे हैं। समुद्र, नदी, तालाब, जंगल और घास के मैदान का परितंत्र विनाश की ओर अग्रसर है यही नहीं वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक असंतुलन के स्पष्ट नजारे दिखने लगे हैं क्योंकि वैश्विक उष्णता से ऋतु चक्रों के सन्तुलित परिचालन में व्यवधान उत्पन्न होने लगा है। हिमखण्ड पिघलने लगे हैं। समुद्र अपनी वर्जनाएं तोड़ रहा है उसका जल स्तर उछाल मार कर संकट की ओर सीधा संवाद कर रहा है अर्थात जल प्रलय का आमंत्रण-पत्र तैयार हो गया है आकाश में ओजोन परत अपना धैर्य खो रही है। साथ ही अन्य प्राकृतिक आपदाएं (सुनामी) कहर ढाहने लगी हैं। पर्यावरण के इस प्रदूषण ने हमारे जनमानस के ऊपर अनेक असाध्य रोगों का आक्रमण शुरू कर दिया है। युद्ध की रणभेरी बज चुकी है। यदि इन परिस्थितियों से मनुष्य प्रकृति के प्रति सचेत और सावधान नहीं हुआ तो भयंकर से भयंकर परिणाम उसके दहलीज पर दस्तक देते नजर आयेंगे।
पर्यावरण दो शब्दों के समन्वय से बना है - परि तथा आवरण। परि से तात्पर्य चारों ओर तथा आवरण का अर्थ है चादर या घेरा अर्थात् जो चारों ओर से घेरे हुए है, वह पर्यावरण कहलाता है। यह वातावरण या पर्यावरण मानव सहित अन्य जीवाणुओं को जो परिस्थितियां दशाएं, शक्तियां और प्रभाव अपने आवरण की क्रोड़ में छिपाये हुए है। विस्तृत अर्थ में जायें तो ‘पर्यावरण सम्पूर्ण दशाओं एवं प्रभावों को जो जीवों के जीवन एवं विकास को प्रभावित करते हैं अर्थात् हम अपने चारो ओर अनेक प्रकार के जीव जंतु, पेड़-पौधों तथा अनेक सजीव व निर्जीव वस्तुएं देखते या महसूस करते हैं वही पर्यावरण कहलाता है। अन्य शब्दों में कहें तो पर्यावरण वह है जो हम अपनी आँखों से सामने अवलोकित करते हैं चाहे वह वायु हो, भूमि हो, अंतरिक्ष हो, या ध्वनि हो या वनस्पति हो। इस तरह से पर्यावरण उस समूची भौतिक व जैविक व्यवस्था को कहते हैं जिसमें सम्पूर्ण जगत के जीवधारी जीवन जीते, बढ़ते और अपनी स्वाभाविक प्र्रवृत्तियों का विकास करते हैं। पर्यावरण जीवन के सामाजिक, सांस्कृतिक व भौतिक आदि सभी पहलुओं को प्रभावित करता है। वास्तव में देखा जाए तो पर्यावरण अत्यन्त व्यापक सत्ता है जो धुलोक से पृथ्वी के प्रत्येक घटक में निहित होता है।
पर्यावरण को अंग्रेजी भाषा में इनवायरमेंट (Environment) कहा गया है जो फ्रांसीसी शब्द Environir शब्द से उत्पन्न हुआ है। जिसका पर्याय घेरना (To Surroun) होता है। अंग्रेजी भाषा में पर्यावरण के लिए एक शब्द Habitat का भी प्रयोग किया जाता है जो लैटिन के Habitare शब्द से बना है, जिसकी व्याख्या यह है कि एक सुनिश्चित स्थान जिसमें जीव उस स्थान की भौतिक एवं जैविक दशाओं में समायोजन स्थापित कर रहते हैं। पारिभाषिक तौर पर देखें तो एक विशेष वातावरण जिसमें एक विशेष जीव वर्ग या समूह निवास करता है। पर्यावरण कहलाता है, पर्यावरण की परिभाषा भारतीय एवं पाश्चात्य पर्यावरणविदों की दृष्टि से देखें तो तो इसका अर्थ स्पष्ट नजर आयेगा - ‘‘भूगोल परिभाषा कोश के अनुसार - ‘‘चारों ओर उन बाहरी दशाओं का योग, जिसके अन्दर एक जीव अथवा समुदाय रहता है या कोई वस्तु रहती है। डा0 वी. पी. सिंह के अनुसार ‘‘पर्यावरण वह आवरण या घेरा है जो मानव समुदाय को चारों ओर से घेरे हुए है तथा मानव को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रभावित करता है।’’ प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं वैज्ञानिक एच फिटिंग ने पर्यावरण का अर्थ जीव के परिस्थिति कारकों का योग बताया है। आपके अनुसार जीवन की परिस्थिति के सभी तथ्य मिलकर पर्यावरण कहलाते हैं। इस प्रकार ‘पर्यावरण’ वह परिवृत्ति है जो मनुष्य को चारों तरफ से घेरे हुए है तथा उसके जीवन और क्रियाओं पर प्रकाश डालती है। इस परिवृत्ति में मनुष्य के बाहर के समस्त तथ्य वस्तुएं, स्थितियां तथा दशाएं सम्मिलित होती हैं। यही सब मानव के जीवन विकास को प्रभावित करती हैं।’’ पी. जिस्बर्ट के अनुसार - ‘‘वह जो किसी वस्तु के चारों ओर से आवृत्त कर उसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है उस वस्तु का पर्यावरण कहलाता है।’’ इसी तरह बैरिंग, लैंगफील्ड और बेल्ड की मान्यता है कि व्यक्ति गर्भावस्था से लेकर मृत्यु पर्यन्त अपने आस-पास से जो भी उत्तेजनाएं ग्रहण करता है उनके समुच्चय का मान ही पर्यावरण है।’’ तापमान, प्रकाश, जल, वायु, मृदा तथा कोई भी बाह्म शक्ति पदार्थ या दशा जो जीवमात्र को किसी न किसी रूप में प्रभावित करती है, पर्यावरण का कारक कहलाती है। इस प्रकार से पर्यावरण एक समुच्चय है और मानव तथा अन्य जीव पर्यावरण के अविभाज्य अंग हैं एवं पृथ्वी को एक पूर्ण इकाई का रूप भी प्रदान करते हैं। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अलेक्जांडर फान हम्बोल्ट ने अपने महान ग्रन्थ कासमास में इसी प्राकृतिक संश्लिष्ट एवं एकता को निम्न शब्दों में प्रतिपादित किया है - ‘हम प्राकृतिक रूप से प्रत्येक जीव को सृष्टि से एक अंग के रूप में मानने के लिए बाध्य हैं तथा पौधे या पशु को केवल एक प्रथक प्रजाति ही नहीं समझना चाहिए बल्कि अन्य जीवित या मृत स्वरूप से जुड़ा हुआ मानना चाहिए।’ इसी तरह मैक आइवर नामक पर्यावरणविद् का मानना है कि ‘‘पृथ्वी का धरातल एवं उसकी सभी प्राकृतिक अवस्थाएं यथा-प्राकृतिक संसाधन, भूमि, जल, पर्वत, मैदान, खनिज पदार्थ, पौधे, पशु तथा समस्त प्राकृतिक शक्तियां जो पृथ्वी पर विद्यमान रहकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं, पर्यावरण के अन्तर्गत आती हैं।’’ वहीं ए. जी. टान्सले का मानना है कि पर्यावरण को ‘‘उन सम्पूर्ण प्रभावी दशाओं का योग कहा जाता है जिनमें जीव रहते हैं।’’ इ. जे. रास का मानना है कि ‘‘पर्यावरण वह बाह्म शक्ति है जो प्रभावित करती है।’’ इसी से सम्बद्ध परिभाषा प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं भूगोलवेत्ता डडले स्टाम्प के अनुसार - ‘‘पर्यावरण प्रभावों का ऐसा योग है जो जीव के विकास एवं प्रकृति को परिवर्तित तथा निर्धारित करता है।’’ हर्सकोविटस के अनुसार - ‘‘पर्यावरण समस्त बाह्म दशाओं एवं प्रभावों का समुच्चय है और इसी सम्बन्ध के कारण जीव प्रतिक्रिया एवं प्रभावित करने में सक्षम होता है।’ स्पष्ट है कि जो तथ्य मानव के जीवन और विकास को प्रभावित करते हैं उन सम्पूर्ण तथ्यों का योग पर्यावरण कहलाता है, भले ही ये तथ्य सजीव हों अथवा निर्जीव। इसी तरह से पर्यावरण की विस्तृत परिभाषा एन. सी. ई. आर. टी., नई दिल्ली के अनुसार ‘‘व्यक्ति के पर्यावरण के अन्तर्गत वे समस्त प्राकृतिक एवं सामाजिक घटक आते हैं। जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में उसके जीवन और व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
संक्षेप में हम निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि पर्यावरण के अन्तर्गत प्राकृतिक एवं मानव निर्मित कारकों का समावेश रहता है जो हमें चारो ओर से घेरे हुए हैं अर्थात पर्यावरण के अन्तर्गत भौतिक के साथ-साथ सांस्कृतिक (जैविक-अजैविक) प्रभावशील घटकों का समावेश किया जाता है जो जगत के जीव की दशाओं और कार्यों को प्रभावित करता है और पर्यावरण की यह गति प्राणि जगत के बीच क्रिया और प्रतिक्रिया की श्रृंखला प्राकृतिक परिवेश से प्रखर होती है। कुल मिलाकर कहा जाये तो पर्यावरण - ‘‘प्राणियों की प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करने वाली आस-पास की सभी जैविक व अजैविक स्थितियों का समुच्चय पर्यावरण कहलाता है।’’
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सम्पर्कः
वरिष्ठ प्रवक्ता: हिन्दी विभाग
दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय
उरई-जालौन (उ0प्र0)-285001
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लेखक परिचय –



युवा साहित्यकार के रूप में ख्याति प्राप्त डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव ने दलित विमर्श के क्षेत्र में ‘दलित विकासवाद ’ की अवधारणा को स्थापित कर उनके सामाजिक,आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। आपके दो सौ पचास से अधिक लेखों का प्रकाशन राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की स्तरीय पत्रिकाओं में हो चुका है। दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनेक पुस्तकों की रचना कर चुके डा0 वीरेन्द्र ने विश्व की ज्वलंत समस्या पर्यावरण को शोधपरक ढंग से प्रस्तुत किया है। राष्ट्रभाषा महासंघ मुम्बई, राजमहल चैक कवर्धा द्वारा स्व0 श्री हरि ठाकुर स्मृति पुरस्कार, बाबा साहब डा0 भीमराव अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान 2006, साहित्य वारिधि मानदोपाधि एवं निराला सम्मान 2008 सहित अनेक सम्मानो से उन्हें अलंकृत किया जा चुका है। वर्तमान में आप भारतीय उच्च शिक्षा अध्ययन संस्थान राष्ट्रपति निवास, शिमला (हि0प्र0) में नई आर्थिक नीति एवं दलितों के समक्ष चुनौतियां (2008-11) विषय पर तीन वर्ष के लिए एसोसियेट हैं।

1 टिप्पणी:

prahlad kumar gupta ने कहा…

Article is very good. I could understand the environment. Pl. continue your writing in this direction.
Dr. Prahlad Kumar Gupta, Advocate