03 मार्च 2009

कुमार मुकुल की दो कवितायें

कुमार मुकुल की दो कवितायें
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हर चलती चीज
कुमार मुकुल

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चेक करता हूं
तो मेल में
एक शिखंडी [ एन्‍वयमस ] मैसेज मिलता है -
कानून के हाथ लंबे होते हैं ...
अब क्‍या करेंगे आप ...
क्‍या करूंगा मैं
भला क्‍या कर सकता है एक रचनाकार
उजबुजाकर जूते फेंकने के सिवा
हां जूता तो फेंक ही सकता है वह
अब वह निशाने पर लगे या नहीं लगे
पर जब वह चल जाता है
तो खुद को बचा ले जाने की सारी कवायदों के बावजूद
दुनिया के इकलौते कानूनाधिपति का चेहरा
गायब हो जाता है
और जूता चला जाता है
डॉलर में बदलता हुआ
इस पूंजीप्रसूत तंत्र की
यही तो खासियत है
कि हर चलती चीज
यहां डॉलर में बदल जाती है अब कानून के हाथ
कितने भी लंबे हो
पर जीवन बेहाथ चलता है
बेहाथ चलता है जीवन ...


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लडकी जीना चाहती है


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समय की धूप से संवलाई
सलोनी सी लड़की है वह
जिसकी आंखें अपने वक्‍त की पीड़ा को
असाधारण ढंग से उद़भाषित करती
छिटका देती हैं
विस्‍फारित कोरों तक
जहां वर्तमान की गर्द
लगातार
उस चमक को पीना चाहती है
पर लड़की जीना चाहती है
अनवरत
आंसू उसकी पलकों की कोरों पर
मचलते रहते हैं
संशय के दौर चलते रहते हैं
गुस्‍सा की-बोर्ड पर चलती उंगलियों के पोरों से
छिटकता रहता है
शून्‍य के परदे पर
और वह बहती रहती है
विडंबनाओं के किनारे काटती


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